O SANJAYA, what did my warrior sons and those of Pandu do when they were gathered at KURUKSHETRA, the field of religious activities?Tell me of those happenings. MADHAVA (Lord Krishna) and PANDAVA were seated in their magnificent chariote attached to white horses and they blew gracefully their divine conches. Wealth is tradition and values, Family and progress, not simply money. नवद्वारे, पुरे, देही, न, एव, कुर्वन्, न, कारयन्।।13।।, अनुवाद: (मनसा) मन को तत्वज्ञान के आधार से (वशी) काल लोक के लाभ से हटा कर दृढ़ इच्छा से (सर्व कर्माणि) सम्पूर्ण शास्त्र अनुकूल धार्मिक कर्मों अर्थात् सत्य साधना से (सóयस्य) संचित कर्म के आधार से अर्थात् सन्चय की हुई सत्य भक्ति कमाई के आधार से (सुखम्) वास्तविक आनन्द में अर्थात् पूर्णमोक्ष रूपी परम शान्ति युक्त सत्यलोक में (आस्ते) स्थित होकर निवास करता है (एव) इस प्रकार फिर (देही) शरीरी अर्थात् परमात्मा के साथ अभेद रूप में जीवात्मा (नवद्वारे) पंच भौतिक नौ द्वारों वाले शरीर रूप (पुरे) किले में (न कुर्वन्) न तो कर्म करता हुआ (न कारयन्) न ही कर्म करवाता हुआ अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सत्यलोक में ही सुख पूर्वक रहता है। (13), हिन्दी: मन को तत्वज्ञान के आधार से काल लोक के लाभ से हटा कर दृढ़ इच्छा से सम्पूर्ण शास्त्र अनुकूल धार्मिक कर्मों अर्थात् सत्य साधना से संचित कर्म के आधार से अर्थात् सन्चय की हुई सत्य भक्ति कमाई के आधार से वास्तविक आनन्द में अर्थात् पूर्णमोक्ष रूपी परम शान्ति युक्त सत्यलोक में स्थित होकर निवास करता है इस प्रकार फिर शरीरी अर्थात् परमात्मा के साथ अभेद रूप में जीवात्मा पंच भौतिक नौ द्वारों वाले शरीर रूप किले में न तो कर्म करता हुआ न ही कर्म करवाता हुआ अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सत्यलोक में ही सुख पूर्वक रहता है।, न, कर्तृत्वम्, न, कर्माणि, लोकस्य, सृजति, प्रभुः, ... (ADHYAY 6) GYAN VIGYAN YOG (ADHYAY 7) AKSHAR BHRAM YOG (ADHYAY 8) RAJ VIDHYA RAJGRUH YOG (ADHYAY 9) Duryodhana explained with pride to Drona: Our army, led by BHISMA, is numerous and skilled. 3 में शास्त्र विधि अनुसार साधना करने वाले कर्मयोगी का विवरण है कि जो श्रद्धालु भक्त चाहे बाल-बच्चों सहित है या रहित है या किसी आश्रम में रहकर सतगुरु व संगत की सेवा में रत हैं। वह सर्वथा राग-द्वेष रहित होता है। वास्तव में वही सन्यासी है, वही फिर अन्य शास्त्र विरुद्ध साधकों को पूर्ण निश्चय के साथ सत्य साधना का ज्ञान स्वतन्त्र होकर बताता है।, साङ्ख्ययोगौ, पृथक्, बालाः, प्रवदन्ति, न, पण्डिताः, Title Gita Series - Adhyay 9. इस सेना में बड़े-बड़े धनुषोंवाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रु पद धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान् काशिराज, पुरुजित् कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैव्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान् उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पांचों पुत्र —– ये सभी महारथी हैं ।। ४ – ५ – ६ ।।. #bhagwadgeeta #geeta #adhyay1 #shloka4 मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता ।। ३१ ।।. आप कर्मोंके सन्यास अर्थात् कर्म छोड़कर आसन लगाकर कान आदि बन्द करके साधना करने की और फिर कर्मयोगकी अर्थात् कर्म करते करते साधना करने की प्रशंसा करते हैं इसलिए इन दोनोंमेंसे जो एक मेरे लिए भलीभाँती निश्चित कल्याणकारक साधन हो उसको कहिये। (1), भावार्थ:- अर्जुन कह रहा है कि भगवन आप एक ओर तो कह रहे हो कि काम करते करते साधना करना ही श्रेयकर है। फिर अध्याय 4 मंत्र 25 से 30 तक में कह रहे हो कि कोई तप करके कोई प्राणायाम आदि करके कोई नाक कान बन्द करके, नाद (ध्वनि) सुन करके आदि से आत्मकल्याण मार्ग मानता है। इसलिए आप की दो तरफ (दोगली) बात से मुझे संशय उत्पन्न हो गया है कृपया निश्चय करके एक मार्ग मुझे कहिए।, कर्म सन्यास दो प्रकार से होता है, 1. O Best of the twice born, I name all of those who are our distinguished Chiefs, the leaders of my army, of your information only. I have no longer any control over my body; my hair stands on end. Find the same shloka below in English and Hindi. गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी सम्बन्धी लोग हैं ।। ३४ ।।. I could not slay them even for domination of the three worlds; how could I slay them for domination of this earth. This video is about Bhagavad Geeta Adhyay 1, Shloka 1 for the people who are not able to do regular Bhagwat Geeta Adhyay Pathan. जो साधक न किसीसे द्वेष करता है और न किसीकी आकांक्षा करता है, वह तत्वदर्शी सन्यासी ही है क्योंकि राग द्वेष युक्त व्यक्ति का मन भटकता है तथा इन से रहित साधक का मन काम करते करते भी केवल प्रभु के भजन व गुणगान में लगा रहता है इसलिए वह सदा सन्यासी ही है क्योंकि वही व्यक्ति बन्धन से मुक्त होकर पूर्ण मुक्ति रूपी सुख के जानने योग्य ज्ञान को ढोल के डंके से अर्थात् पूर्ण निश्चय के साथ भिन्न-भिन्न स्वतन्त्र होकर सही व्याख्या करता है।, भावार्थ:- इस मंत्र नं. 29.3M . श्रीकृष्ण महाराज ने पाञ्चजन्य-नामक, अर्जुन ने देवदत्त-नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र-नामक महाशंख बजाया ।। १५ ।।. Bhagwat Geeta Slokas, Lyrcis, Story, Meaning, Songs, Katha, Adhyay, Chapter, Verses, Gyan, Knowledge, Episodes, Saar, Shlok, etc. Here are a few Stotras of Goddess Lakshmi from Hindu Mythology. After being requested by GUDAKESA (Arjun), HRISHIKESA (Lord Krishna), placed ARJUN’s magnificent chariot between the armies. I can no longer stand; my knees are weak; my mind is clouded and spinning in many directions, and, dear KRISHNA, I am seeing bad signs. (यः) जो साधक (न) न किसीसे (द्वेष्टि) द्वेष करता है और (न) न किसीकी (काङ्क्षति) आकांक्षा करता है, (सः) वह तत्वदर्शी (नित्यसóयासी) सन्यासी ही है क्योंकि राग द्वेष युक्त व्यक्ति का मन भटकता है तथा इन से रहित साधक का मन काम करते करते भी केवल प्रभु के भजन व गुणगान में लगा रहता है इसलिए वह सदा सन्यासी ही है (हि) क्योंकि वही व्यक्ति (बन्धात्) बन्धन से मुक्त होकर (सुखम्) पूर्ण मुक्ति रूपी सुख के (ज्ञेयः) जानने योग्य ज्ञान को (निद्र्वन्द्धः) ढोल के डंके से अर्थात् पूर्ण निश्चय के साथ भिन्न-भिन्न (प्रमुच्यते) स्वतन्त्र होकर सही व्याख्या करता है। (3), हिन्दी: हे अर्जुन! संजय बोले —- रणभूमि में शोकसे उद्भिग्नमन वाले  अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गये ।। ४७ ।।, Adhyay 1 ||  Adhyay 2 || Adhyay 3 || Adhyay 4 || Adhyay 5 || Adhyay 6 || Adhyay 7 || Adhyay 8 || Adhyay 9 || Adhyay 10 || Adhyay 11|| Adhyay 12 || Adhyay 13 || Adhyay 14 || Adhyay 15 || Adhyay 16 ||Adhyay 17 || Adhyay 18 ||, The Gita Hindi – Adhyay – 9 (Complete) Adhyay -9  – Shloka -1 Lord Krishna …, © 2015 The Gita Hindi | All rights reserved | www.TheGitaHindi.com, प्रमुख श्लोक – Key Shlokas – Gita Chalisa, Yada Yada Hi Dharmasya with Lyrics – Jagjit Singh – Gita Slok – Sing Along. Yes, I have read Bhagavad Gita and I read it often. छिन्नद्वैधाः, यतात्मानः, सर्वभूतहिते, रताः।।25।।, अनुवाद: (क्षीणकल्मषाः) शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से जिनके सब पाप नष्ट हो गये हैं, (छिन्नद्वैधाः) जिनके सब संश्य निवृत्त हो गये हैं अर्थात् जो पथ भ्रष्ट नहीं हैं (सर्वभूतहिते) जो सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें (रताः) रत हैं और (यतात्मानः) परमात्मा के प्रयत्न अर्थात् साधना से स्थित हैं वे (ऋषयः) साधु पुरुष (ब्रह्मनिर्वाणम्) शान्त ब्रह्म को अर्थात् पूर्ण परमात्मा को (लभन्ते) प्राप्त होते हैं। (25), हिन्दी: शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से जिनके सब पाप नष्ट हो गये हैं, जिनके सब संश्य निवृत्त हो गये हैं अर्थात् जो पथ भ्रष्ट नहीं हैं जो सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें रत हैं और परमात्मा के प्रयत्न अर्थात् साधना से स्थित हैं वे साधु पुरुष शान्त ब्रह्म को अर्थात् पूर्ण परमात्मा को प्राप्त होते हैं।, कामक्रोधवियुक्तानाम्, यतीनाम्, यतचेतसाम्, Tremendous noise followed. Sometimes I am amazed that a book as old as 5000 years is still relevant in the age of AI (Artificial Intelligence). Your wise self, BHISMA, KARNA, KRIPA, the victorious in fight; ASVATTHAMA, VIKARNA and SAUMADATTI as well. Find the same shloka below in English and Hindi. • Slide book pages up or down or click the previous and next button on every page top and bottom to locate . बुद्धिमान् विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता।, शक्नोति, इह, एव, यः, सोढुम्, प्राक्, शरीरविमोक्षणात्, By the destruction of these, the whole family becomes evil and huge sins are committed. Geeta Adhyay PDF; Santha Kaksha Registration ; Contact Us; Newsletter. शुनि, च, एव, श्वपाके, च, पण्डिताः, समदर्शिनः।।18।।, अनुवाद: (विद्याविनयसम्पन्ने) गुप्त तत्वज्ञान से परिपूर्ण अर्थात् पूर्ण तत्वज्ञानी साधक (ब्राह्मणे) ब्राह्मण में (गवि) गाय में (हस्तिनि) हाथी में (च) तथा (शुनि) कुत्ते (च) और (श्वपाके) चाण्डालमें (समदर्शिनः) एक समान समझता है अर्थात् एक ही भाव रखता है वास्तव में इन लक्षणों से युक्त हैं (पण्डिताः) ज्ञानीजन अर्थात् तत्वज्ञानी (एव) ही है। (18), हिन्दी: गुप्त तत्वज्ञान से परिपूर्ण अर्थात् पूर्ण तत्वज्ञानी साधक ब्राह्मण में गाय में हाथी में तथा कुत्ते और चाण्डालमें एक समान समझता है अर्थात् एक ही भाव रखता है वास्तव में इन लक्षणों से युक्त हैं ज्ञानीजन अर्थात् तत्वज्ञानी ही है।, इह, एव, तैः, जितः, सर्गः, येषाम्, साम्ये, स्थितम्, मनः, According to Bhagwan Shri Krishn in Shrimad Bhagawad Geeta, infinite and never ending desires (Kaam) is the main enemy of the human being. Conches, kettle-drums, tabors, and trumpets and cowhorns blared across the battlefield. Now all of you quickly assume your proper positions for battle, your main goal being to protect and fight alongside BHISMA, your leader, by all means. (तु) इसके विपरित (सóयास) कर्म सन्यास से तो (अयोगतः) शास्त्र विधि रहित साधना होने के कारण (दुःखम्) दुःख ही (आप्तुम्) प्राप्त होता है तथा (योगयुक्तः) शास्त्र अनुकूल साधना प्राप्त (मुनिः) साधक (ब्रह्म) प्रभु को (नचिरेण) अविलम्ब ही (अधिगच्छति) प्राप्त हो जाता है। (6), हिन्दी: हे अर्जुन! तेषाम्, आदित्यवत्, ज्ञानम्, प्रकाशयति, तत्परम्।।16।।, अनुवाद: (तु) दूसरी ओर (येषाम्) जिनका (अज्ञानम्) अज्ञान (आत्मनः) पूर्ण परमात्मा जो आत्मा का अभेद साथी है इसलिए आत्मा कहा जाता है उस पूर्ण परमात्मा के (तत् ज्ञानेन) तत्वज्ञान से (नाशितम्) नष्ट हो गया है (तेषाम्) उनका वह (ज्ञानम्) तत्वज्ञान (तत्परम्) उस पूर्ण परमात्मा को (आदित्यवत्) सूर्य के सदृश (प्रकाशयति) प्रकाश कर देता है अर्थात् अज्ञान रूपी अंधेरा हटा देता है। (16), हिन्दी: दूसरी ओर जिनका अज्ञान पूर्ण परमात्मा जो आत्मा का अभेद साथी है इसलिए आत्मा कहा जाता है उस पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान से नष्ट हो गया है उनका वह तत्वज्ञान उस पूर्ण परमात्मा को सूर्य के सदृश प्रकाश कर देता है अर्थात् अज्ञान रूपी अंधेरा हटा देता है।, कबीर, तारा मण्डल बैठ कर चांद बड़ाई खाए। उदय हुआ जब सूरज का स्यों तारों छिप जाए।।, कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, तत्वज्ञान सो ज्ञान।जैसे गोला तोप का करता चले मैदान।।, तद्बुद्धयः, तदात्मानः, तन्निष्ठाः, तत्परायणाः, ।। ३८ – ३९ ।।. एकम्, साङ्ख्यम्, च, योगम्, च, यः, पश्यति, सः, पश्यति।।5।।, अनुवाद: शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से (साङ्ख्यैः) तत्वज्ञानियों द्वारा (यत्) जो (स्थानम्) स्थान अर्थात् सत्यलोक (प्राप्यते) प्राप्त किया जाता है (योगैः) तत्वदर्शीयों से उपदेश प्राप्त करके साधारण गृहस्थी व्यक्तियों अर्थात् कर्मयोगियोंद्वारा (अपि) भी (तत्) वही (गम्यते) सत्यलोक स्थान प्राप्त किया जाता है (च) और इसलिए (यः) जो पुरुष (साङ्ख्यम्) ज्ञानयोग (च) और (योगम्) कर्मयोगको फलरूपमें (एकम्) एक (पश्यति) देखता है (सः) वही यथार्थ (पश्यति) देखता है अर्थात् वह वास्तव में भक्ति मार्ग जानता है (5), हिन्दी:शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से तत्वज्ञानियों द्वारा जो स्थान अर्थात् सत्यलोक प्राप्त किया जाता है तत्वदर्शीयों से उपदेश प्राप्त करके साधारण गृहस्थी व्यक्तियों अर्थात् कर्मयोगियोंद्वारा भी वही सत्यलोक स्थान प्राप्त किया जाता है और इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग और कर्मयोगको फलरूपमें एक देखता है वही यथार्थ देखता है अर्थात् वह वास्तव में भक्ति मार्ग जानता है, विशेष:- उपरोक्त अध्याय 5 मंत्र 4-5 का भावार्थ है कि कोई तो कहता है कि जिसको ज्ञान हो गया है वही शादी नहीं करवाता तथा आजीवन ब्रह्मचारी रहता है वही पार हो सकता है। वह चाहे घर रहे, चाहे किसी आश्रम में रहे। कारण वह व्यक्ति कुछ ज्ञान प्राप्त करके अन्य जिज्ञासुओं को अच्छी प्रकार उदाहरण देकर समझाने लग जाता है। तो भोली आत्माऐं समझती हैं कि यह तो बहुत बड़ा ज्ञानी हो गया है। यह तो पार है, हमारा गृहस्थियों का नम्बर कहाँ है। कुछ एक कहते हैं कि बाल-बच्चों में रहता हुआ ही कल्याण को प्राप्त होता है। कारण गृहस्थ व्यक्ति दान-धर्म करता है, इसलिए श्रेष्ठ है। इसलिए कहा है कि वे तो दोनों प्रकार के विचार व्यक्त करने वाले बच्चे हैं, उन्हें विद्वान मत समझो। वास्तविक ज्ञान तो पूर्ण संत जो तत्वदर्शी है, वही बताता है कि शास्त्र विधि अनुसार साधना गुरु मर्यादा में रहकर करने वाले उपरोक्त दोनों ही प्रकार के साधक एक जैसी ही प्राप्ति करते हैं। जो साधक इस व्याख्या को समझ जाएगा वह किसी की बातों में आकर विचलित नहीं होता। ब्रह्मचारी रहकर साधना करने वाला भक्त जो अन्य को ज्ञान बताता है, फिर उसकी कोई प्रशंसा कर रहा है कि बड़ा ज्ञानी है, परन्तु तत्व ज्ञान से परिचित जानता है कि ज्ञान तो सतगुरु का बताया हुआ है, ज्ञान से नहीं, नाम जाप व गुरु मर्यादा में रहने से मुक्ति होगी। इसी प्रकार जो गृहस्थी है वह भी जानता है कि यह भक्त जी भले ही चार मंत्र व वाणी सीखे हुए है तथा अन्य इसके व्यर्थ प्रशंसक बने हैं, ये दोनों ही नादान हैं। मुक्ति तो नाम जाप व गुरु मर्यादा में रहने से होगी, नहीं तो दोनों ही पाप के भागी व भक्तिहीन हो जायेंगे। ऐसा जो समझ चुका है वह चाहे ब्रह्मचारी है या गृहस्थी दोनों ही वास्तविकता को जानते हैं। उसी वास्तविक ज्ञान को जान कर साधना करने वाले साधक के विषय में निम्न मंत्रों का वर्णन किया है।, सóयासः, तु, महाबाहो, दुःखम्, आप्तुम्, अयोगतः, The actions of charity (daan) – yagya – austerity (tap) should be performed. The divine mother who protects, nourishes, punish, bless as well as showing the easiest way to achieve liberation. Geeta Ch-15-Prav-29 download. प्राणापानौ, समौ, कृत्वा, नासाभ्यन्तरचारिणौ।।27।।, यतेन्द्रियमनोबुद्धिः, मुनिः, मोक्षपरायणः, Still better is meditation with divine knowledge rather thanmere knowledge by itself. • Slight click any area of screen to open the basic settings of book contains Previous, Next, Catlog, Day/Night, Config and About. योगयुक्तः, विशुद्धात्मा, विजितात्मा, जितेन्द्रियः, तत्वज्ञान तथा सत्य भक्ति से जिसका मन संस्य रहित है, इन्द्री जीता हुआ पवित्र आत्मा और सर्व प्राणियों के मालिक की सत्यसाधना से सर्व प्राणियों को आत्मा रूप में एक समझकर तत्वज्ञान को प्राप्त प्राणी संसार में रहता हुआ सत्य साधना में लगा हुआ सांसारिक कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता अर्थात् सन्तान व सम्पत्ति में आसक्त नहीं होता। क्योंकि उसे तत्वज्ञान से ज्ञान हो जाता है कि यह सन्तान व सम्पति अपनी नहीं है। जैसे कोई व्यक्ति किसी होटल में रह रहा हो, वहाँ के नौकरों व अन्य सामान जैसे टी.वी., सोफा सेट, दूरभाष, चारपाई व जिस कमरे में रह रहा है को अपना नहीं समझता उस व्यक्ति को पता होता है कि ये वस्तुऐं मेरी नहीं हंै। इसलिए उन से द्वेष भी नहीं होता तथा लगाव भी नहीं बनता तथा अपने मूल उद्देश्य को नहीं भूलता। इसलिए जिस घर में हम रह रहे हैं, इस सर्व सम्पत्ति व सन्तान को अपना न समझ कर प्रेम पूर्वक रहते हुए प्रभु प्राप्ति की लगन लगाए रखें।. The King YUDISHTHIRA. हे केशव ! हमलोग बुद्भिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उधत हो गये हैं ।। ४५ ।।. Bhagwat Geeta 14 adhyay or mahatmy, Bhagwat Geeta 14 adhyay in hindi, bhagwat geeta katha, jai shree krishna, radhe radhe | Listen to all 700 verses of the Gita with a beautiful accompaniment of flute, veena, sitar, mridanga, tabla and tala. In the Abhimlan section of the Sama Veda isstated: Better is divine knowledge then mere meditation. अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृष्णचन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर के इस प्रकार कहा की हे पार्थ ! Basic Sanskrit Grammar; Geeta Adhyay PDF; Reference Books; Geeta Study Data; Videos. अज्ञानेन, आवृतम्, ज्ञानम्, तेन, मुह्यन्ति, जन्तवः।।15।।, अनुवाद: (विभुः) पूर्ण परमात्मा (न) न (कस्यचित्) किसीके (पापम्) पाप का (च) और (न) न किसीके (सुकृतम्) शुभकर्मका (एव) ही (आदत्ते) प्रति फल देता है अर्थात् निर्धारित किए नियम अनुसार फल देता है किंतु (अज्ञानेन) अज्ञानके द्वारा (ज्ञानम्) ज्ञान (आवृतम्) ढका हुआ है (तेन) उसीसे (जन्तवः) तत्वज्ञान हीनता के कारण जानवरों तुल्य सब अज्ञानी मनुष्य (मुह्यन्ति) मोहित हो रहे हैं अर्थात् स्वभाववश शास्त्र विधि रहित भक्ति कर्म व सांसारिक कर्म करके क्षणिक सुखों में आसक्त हो रहे हैं। जो साधक शास्त्र विधि अनुसार भक्ति कर्म करते हैं उनके पाप को प्रभु क्षमा कर देता है अन्यथा संस्कार ही वर्तता है अर्थात् प्राप्त करता है। (15) इसी का विस्तृत विवरण पवित्र गीता अध्याय 16 व 17 में देखें।, हिन्दी: पूर्ण परमात्मा न किसीके पाप का और न किसीके शुभकर्मका ही प्रति फल देता है अर्थात् निर्धारित किए नियम अनुसार फल देता है किंतु अज्ञानके द्वारा ज्ञान ढका हुआ है उसीसे तत्वज्ञान हीनता के कारण जानवरों तुल्य सब अज्ञानी मनुष्य मोहित हो रहे हैं अर्थात् स्वभाववश शास्त्र विधि रहित भक्ति कर्म व सांसारिक कर्म करके क्षणिक सुखों में आसक्त हो रहे हैं। जो साधक शास्त्र विधि अनुसार भक्ति कर्म करते हैं उनके पाप को प्रभु क्षमा कर देता है अन्यथा संस्कार ही वर्तता है अर्थात् प्राप्त करता है। इसी का विस्तृत विवरण पवित्र गीता अध्याय 16 व 17 में देखें।, भावार्थ:- अध्याय 5 श्लोक 14-15 में तत्व ज्ञानहीनत व्यक्तियों को जन्तवः अर्थात् जानवरों तुल्य कहा है क्योंकि तत्वज्ञान के बिना पूर्ण मोक्ष नहीं हो सकता पूर्ण मोक्ष बिना परम शान्ति नहीं हो सकती इसलिए कहा है कि पूर्ण परमात्मा ने जब सतलोक में सृष्टि रची थी उस समय किसी को कोई कर्म आधार बना कर उत्पत्ति नहीं की थी। सत्यलोक में सुन्दर शरीर दिया था जो कभी विनाश नहीं होता। परन्तु प्रभु ने कर्म फल का विद्यान अवश्य बनाया था। इसलिए सर्व प्राणी अपने स्वभाववश कर्म करके सुख व दुःख के भोगी होते हैं। जैसे हम सर्व आत्माऐं सत्यलोक में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा(सतपुरुष) द्वारा अपने मध्य से शब्द शक्ति से उत्पन्न किए। वहाँ सत्यलोक में हमें कोई कर्म नहंीं करना था तथा सर्व सुख उपलब्ध थे। हम स्वयं अपने स्वभाव वश होकर ज्योति निरंजन (ब्रह्म-काल) पर आसक्त हो कर अपने सुखदाई प्रभु से विमुख हो गए। उसी का परिणाम यह निकला कि अब हम कर्म बन्धन में स्वयं ही बन्ध गए। अब जैसे कर्म करते हैं, उसी का फल निर्धारित नियमानुसार ही प्राप्त कर रहे हैं। जो साधक शास्त्र अनुकूल साधना करता है उसके पाप को पूर्ण परमात्मा क्षमा करता है अन्यथा संस्कार ही वर्तता है अर्थात् संस्कार ही प्राप्त करता है। नीचे के मंत्र 16 से 28 तक शास्त्र अनुकूल भक्ति कर्म तथा मर्यादा में रहकर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं तथा पूर्ण प्रभु पाप क्षमा कर देता है। इसलिए कत्र्तव्य कर्म अर्थात् करने योग्य भक्ति व संसारिक कर्म करता हुआ ही पूर्ण मुक्त होता है।, ज्ञानेन, तु, तत्, अज्ञानम्, येषाम्, नाशितम्, आत्मनः, shrimad bhagwat geeta 16 adhyay. यः, अन्तःसुखः, अन्तरारामः, तथा, अन्तज्र्योतिः, एव, यः, जो पुरुष निश्चय करके अन्तःकरण में ही सुखवाला है पूर्ण परमात्मा जो अन्तर्यामी रूप में आत्मा के साथ है उसी अन्तर्यामी परमात्मा में ही रमण करनेवाला है तथा जो अन्तः करण प्रकाश वाला अर्थात् सत्य भक्ति शास्त्र ज्ञान अनुसार करता हुआ मार्ग से भ्रष्ट नहीं होता वह परमात्मा जैसे गुणों युक्त भक्त शान्त ब्रह्म अर्थात् पूर्ण परमात्माको प्राप्त होता है।. Those whom we seek these pleasures from (the enjoyment of kingdom), are standing before us staking their lives and property, possessions which I have no desire for. This is the list of 108 of the most important slokas from the Bhagavad-gita As It Is (1972 Macmillan Edition) by His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada. ।। १ ।।. श्वसन्, प्रलपन्, विसृजन्, गृह्णन्, उन्मिषन्, निमिषन्, अपि, तत्वदर्शी प्रभु में लीन योगी तो देखता हुआ सुनता हुआ स्पर्श करता हुआ सूँघता हुआ भोजन करता हुआ चलता हुआ सोता हुआ श्वांस लेता हुआ बोलता हुआ त्यागता हुआ ग्रहण करता हुआ तथा आँखोंको खोलता और मूँदता हुआ भी सब इन्द्रियाँ अपने-अपने अर्थोंमें बरत रही हैं अर्थात् दुराचार नहीं करता इस प्रकार समझकर निःसन्देह ऐसा मानता है कि मैं कुछ भी नहीं करता हूँ अर्थात् ऐसा कर्म नहीं करता जो पाप दायक है।. Watch Queue Queue Bhagwat Geeta 15 adhyay, or mahatmy in hindi; Bhagwat Geeta 14 adhyay, or … The everlasting traditions, customs and principles of a caste are destroyed when different castes join together and create mixed-blood generations. 31.7M . यतेन्द्रियमनोबुद्धिः, मुनिः, मोक्षपरायणः, वास्तव में बाहरके विषयभोगोंको बाहर निकालकर और नेत्रोंकी दृष्टिको भृकुटीके बीचमें स्थित करके तथा नासिकामें चलने प्राण और अपानवायु अर्थात् स्वांस-उस्वांस को सम करके सत्यनाम सुमरण करता है जिसने इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि जीती हुई हैं, अर्थात् जो नाम स्मरण पर ध्यान लगाता है मन को भ्रमित नहीं होने देता ऐसा जो मोक्षपरायण मोक्ष के लिए प्रयत्न शील मननशील साधक इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वास्तव में वह सदा मुक्त है।, मुझको सब यज्ञ और तपोंका भोगनेवाला सम्पूर्ण लोकोंके ईश्वरोंका भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा जानकर मेरे पर ही आश्रित रहने मुझ से मिलने वाली अस्थाई, अश्रेष्ठ शान्ति को प्राप्त होते हैं जिस कारण से उनकी परम शान्ति पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है अर्थात् शान्ति की क्षमता समाप्त हो जाती है, पूर्ण मोक्ष से वंचित रह जाते हैं इसलिए मेरा साधक भी महादुःखी रहता है, इसी का प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 66 में है कि शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसा तथा अध्याय 7 श्लोक 18 में तथा गीता अध्याय 6 श्लोक 15 में भी स्पष्ट प्रमाण है, इसीलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 16.17 में कहा है कि वास्तव में उत्तम पुरूष अर्थात् पूर्ण मोक्ष दायक परमात्मा तो कोई अन्य है इसलिए अध्याय 18 श्लोक 62, 64, 66 में कहा है कि अर्जुन सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृप्या से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम अर्थात् सत्यलोक को प्राप्त होगा।. Greed has clouded the minds and overpowered the intelligence of the sons of DHRTARASHTRA and so they feel no guilt, and fail to see the sins they are commiting by betraying friends and destroying their families. तयोः, तु, कर्मसóयासात्, कर्मयोगः, विशिष्यते।।2।।, अनुवाद: तत्वदर्शी संत न मिलने के कारण वास्तविक भक्ति का ज्ञान न होने से (सóयासः) शास्त्र विधि रहित साधना प्राप्त साधक प्रभु प्राप्ति से विशेष प्रेरित होकर गृहत्याग कर वन में चला जाना या कर्म त्याग कर एक स्थान पर बैठ कर कान नाक आदि बंद करके या तप आदि करना (च) तथा (कर्मयोगः) शास्त्र विधि रहित साधना कर्म करते-करते भी करना (उभौ) दोनों ही व्यर्थ है अर्थात् श्रेयकर नहीं हैं तथा न करने वाली है शास्त्रविधी अनुसार साधना करने वाले जो सन्यास लेकर आश्रम में रहते हैं तथा कर्म सन्यास नहीं लेते तथा जो विवाह करा कर घर पर रहते हैं उन दोनों की साधना ही (निश्रेयसकरौ) अमंगलकारी नहीं हैं (तु) परन्तु (तयोः) उपरोक्त उन दोनोंमें भी (कर्मसóयासात्) यदि आश्रम रह कर भी काम चोर है उस कर्मसंन्याससे (कर्मयोगः) कर्मयोग संसारिक कर्म करते-करते शास्त्र अनुसार साधना करना (विशिष्यते) श्रेष्ठ है। यही प्रमाण गीता अध्याय 18 श्लोक 41 से 46 में कहा है कि चारों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य तथा शुद्र) के व्यक्ति भी अपने स्वभाविक कर्म करते हुए परम सिद्धी अर्थात् पूर्ण मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। परम सिद्धी के विषय में स्पष्ट किया है श्लोक 46 में कि जिस परमात्मा परमेश्वर से सर्व प्राणियों की उत्पति हुई है जिस से यह समस्त संसार व्याप्त है, उस परमेश्वर कि अपने-2 स्वभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धी को प्राप्त हो जाता हैं अर्थात् कर्म करता हुआ सत्य साधक पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। अध्याय 18 श्लोक 47 में स्पष्ट किया है कि शास्त्र विरूद्ध साधना करने वाले (कर्म सन्यास) से अपना शास्त्र विधी अनुसार (कर्म करते हुए) साधना करने वाला श्रेष्ठ है। क्योंकि अपने कर्म करता हुआ साधक पाप को प्राप्त नहीं होता। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि कर्म सन्यास करके हठ करना पाप है। श्लोक 48 में स्पष्ट किया है कि अपने स्वाभाविक कर्मों को नहीं त्यागना चाहिए चाहे उसमें कुछ पाप भी नजर आता है। जैसे खेती करने में जीव मरते हैं आदि-2।, हिन्दी:तत्वदर्शी संत न मिलने के कारण वास्तविक भक्ति का ज्ञान न होने से शास्त्र विधि रहित साधना प्राप्त साधक प्रभु प्राप्ति से विशेष प्रेरित होकर गृहत्याग कर वन में चला जाना या कर्म त्याग कर एक स्थान पर बैठ कर कान नाक आदि बंद करके या तप आदि करना तथा शास्त्र विधि रहित साधना कर्म करते-करते भी करना दोनों ही व्यर्थ है अर्थात् श्रेयकर नहीं हैं तथा न करने वाली है शास्त्रविधी अनुसार साधना करने वाले जो सन्यास लेकर आश्रम में रहते हैं तथा कर्म सन्यास नहीं लेते तथा जो विवाह करा कर घर पर रहते हैं उन दोनों की साधना ही अमंगलकारी नहीं हैं परन्तु उपरोक्त उन दोनोंमें भी यदि आश्रम रह कर भी काम चोर है उस कर्मसंन्याससे कर्मयोग संसारिक कर्म करते-करते शास्त्र अनुसार साधना करना श्रेष्ठ है। यही प्रमाण गीता अध्याय 18 श्लोक 41 से 46 में कहा है कि चारों वर्णों के व्यक्ति भी अपने स्वभाविक कर्म करते हुए परम सिद्धी अर्थात् पूर्ण मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। परम सिद्धी के विषय में स्पष्ट किया है श्लोक 46 में कि जिस परमात्मा परमेश्वर से सर्व प्राणियों की उत्पति हुई है जिस से यह समस्त संसार व्याप्त है, उस परमेश्वर कि अपने-2 स्वभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धी को प्राप्त हो जाता हैं अर्थात् कर्म करता हुआ सत्य साधक पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। अध्याय 18 श्लोक 47 में स्पष्ट किया है कि शास्त्र विरूद्ध साधना करने वाले से अपना शास्त्र विधी अनुसार साधना करने वाला श्रेष्ठ है। क्योंकि अपने कर्म करता हुआ साधक पाप को प्राप्त नहीं होता। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि कर्म सन्यास करके हठ करना पाप है। श्लोक 48 में स्पष्ट किया है कि अपने स्वाभाविक कर्मों को नहीं त्यागना चाहिए चाहे उसमें कुछ पाप भी नजर आता है। जैसे खेती करने में जीव मरते हैं आदि-2।, भावार्थ: उपरोक्त मंत्र नं. I could not slay (kill) my relatives even if I had to give my own life away. Adhyay -6 – Shloka -3. Now you can listen to the ancient sanskrit chants of Bhagavad Gita, sung in classical melodies by noted devotional singer Sri Vidyabhushana. Bhagwat Geeta 15 adhyay or mahatmy, Bhagwat Geeta 15 adhyay or mahatmy in hindi and sanskrit, bhagwat geeta katha, jai shree krishna| Geeta Adhyay 13 Ke Shlok Sankhya 19 Me Bhagwan Shrikrishna Bole Hain Ki Prakriti Aur Purush In Dono Ko Hi Tu Anadi Jano Aur Raag Beswadi Vikaron Ko Tatha Trigunatmak Sampurna Padarthon Ko Bhi Prakriti Se Utpann Jaane Iska Arth Spasht Kare? हे आचार्य ! युक्तः, कर्मफलम्, त्यक्त्वा, शान्तिम्, आप्नोति, नैष्ठिकीम्, शास्त्रानुकूल सत्य साधना में लगा भक्त कर्मोंके फलका त्याग करके स्थाई अर्थात् परम शान्तिको प्राप्त होता है और शास्त्र विधि रहित साधना करने वाला अर्थात् असाध मनो कामना की पूर्ति के लिए फलमें आसक्त होकर पाप कर्म के कारण बँधता है।. यत्, साङ्ख्यैः, प्राप्यते, स्थानम्, तत्, योगैः, अपि, गम्यते, शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से तत्वज्ञानियों द्वारा जो स्थान अर्थात् सत्यलोक प्राप्त किया जाता है तत्वदर्शीयों से उपदेश प्राप्त करके साधारण गृहस्थी व्यक्तियों अर्थात् कर्मयोगियोंद्वारा भी वही सत्यलोक स्थान प्राप्त किया जाता है और इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग और कर्मयोगको फलरूपमें एक देखता है वही यथार्थ देखता है अर्थात् वह वास्तव में भक्ति मार्ग जानता है. To bring joy to DURYODHANA’s heart, the great grandsire BHISMA, the oldest and most famous of the KAURAVAS, roared loudly like a lion (a battle-cry), and blew his conch to signal the army to advance towards the enemy. Adhyay 11 અધ્યાય ૧૧ – શ્લોક ૫૫ – ગીતાજી . અધ્યાય ૪ – શ્લોક ૩૨ – ગીતાજી જય શ્રી કૃષ્ણ … શ્લોક ની છબી લોડ થઈ રહી છે…. कामक्रोधोद्भ्वम्, वेगम्, सः, युक्तः, सः, सुखी, नरः।।23।।, अनुवाद: (यः) जो साधक (इह) इस मनुष्य शरीरमें (शरीरविमोक्षणात्) शरीरका नाश होनेसे (प्राक्) पहले-पहले (एव) ही (कामक्रोधोद्भ्वम्) काम-क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले (वेगम्) वेगको (सोढुम्) सहन करनेमें (शक्नोति) समर्थ हो जाता है (सः) वही (नरः) व्यक्ति (युक्तः)प्रभु में लीन भक्त है और (सः)वही (सुखी)सुखी है। (23), हिन्दी: जो साधक इस मनुष्य शरीरमें शरीरका नाश होनेसे पहले-पहले ही काम-क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले वेगको सहन करनेमें समर्थ हो जाता है वही व्यक्ति प्रभु में लीन भक्त है और वही सुखी है।, यः, अन्तःसुखः, अन्तरारामः, तथा, अन्तज्र्योतिः, एव, यः, Subscribe to receive inspiration, ideas, and news in your inbox. I desire to see all of those great warrior kings who have gathered here to fight alongside the evil-minded DURYODHANA (son of Dhrtarashtra). World's first online hindi audio library. सुहृदम्, सर्वभूतानाम्, ज्ञात्वा, माम्, शान्तिम्, ऋच्छति।।29।।, अनुवाद: (माम्) मुझको (यज्ञतपसाम्) सब यज्ञ और तपोंका (भोक्तारम्) भोगनेवाला (सर्वलोकमहेश्वरम्) सम्पूर्ण लोकोंके ईश्वरोंका भी ईश्वर तथा (सर्वभूतानाम्) सम्पूर्ण प्राणियोंका (सुहृदम्) स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा (ज्ञात्वा) जानकर मेरे पर ही आश्रित रहने मुझ से मिलने वाली अस्थाई, अश्रेष्ठ (शान्तिम्) शान्ति को (ऋच्छति) प्राप्त होते हैं जिस कारण से उनकी परम शान्ति पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है अर्थात् शान्ति की क्षमता समाप्त हो जाती है, पूर्ण मोक्ष से वंचित रह जाते हैं इसलिए मेरा साधक भी महादुःखी रहता है, इसी का प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 66 में है कि शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसा तथा अध्याय 7 श्लोक 18 में तथा गीता अध्याय 6 श्लोक 15 में भी स्पष्ट प्रमाण है, इसीलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में कहा है कि वास्तव में उत्तम पुरूष अर्थात् पूर्ण मोक्ष दायक परमात्मा तो कोई अन्य है इसलिए अध्याय 18 श्लोक 62, 64, 66 में कहा है कि अर्जुन सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृप्या से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम अर्थात् सत्यलोक को प्राप्त होगा। (29), हिन्दी:मुझको सब यज्ञ और तपोंका भोगनेवाला सम्पूर्ण लोकोंके ईश्वरोंका भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा जानकर मेरे पर ही आश्रित रहने मुझ से मिलने वाली अस्थाई, अश्रेष्ठ शान्ति को प्राप्त होते हैं जिस कारण से उनकी परम शान्ति पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है अर्थात् शान्ति की क्षमता समाप्त हो जाती है, पूर्ण मोक्ष से वंचित रह जाते हैं इसलिए मेरा साधक भी महादुःखी रहता है, इसी का प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 66 में है कि शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसा तथा अध्याय 7 श्लोक 18 में तथा गीता अध्याय 6 श्लोक 15 में भी स्पष्ट प्रमाण है, इसीलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 16.17 में कहा है कि वास्तव में उत्तम पुरूष अर्थात् पूर्ण मोक्ष दायक परमात्मा तो कोई अन्य है इसलिए अध्याय 18 श्लोक 62, 64, 66 में कहा है कि अर्जुन सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृप्या से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम अर्थात् सत्यलोक को प्राप्त होगा।, विशेष: क्योंकि काल (ब्रह्म) भगवान तीन लोक के (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) भगवानों तथा 21 ब्रह्मण्ड के लोकों का मालिक है। इसलिए ईश्वरों का भी ईश्वर है। इसलिए महेश्वर कहा है तथा जो भी साधक यज्ञ या अन्य साधना(तप) करके जो सुविधा प्राप्त करता है उसका भोक्ता(खाने वाला) काल ही है। जैसे राजा बन कर आनन्द करना, नाना प्रकार के विकार करना। इन सब का आनन्द स्वयं काल भगवान मन रूप से प्राप्त करता है तथा फिर तप्त शिला पर गर्म करके उससे वासना युक्त पदार्थ निकाल कर खाता है। अज्ञानतावश नादान प्राणी इसी काल भगवान को दयालु व प्रेमी जान कर प्रसन्न है। जैसे कसाई के बकरे अपने मालिक(कसाई) को देखते हैं कि वह चारा डालता है, पानी पिलाता है, गर्मी-सर्दी से बचाता है। इसलिए उसे दयालु तथा प्रेमी समझते हैं परंतु वास्तव में वह कसाई उनका काल है। सबको काटेगा, मारेगा तथा स्वार्थ सिद्ध करेगा। ऐसे ही काल भगवान दयालु दिखाई देता है परंतु सर्व प्राणियों को खाता है। इसलिए कहा है कि जो मुझ काल को ही सर्वसवा मानकर साधनारत है। उनकी शान्ति समाप्त हो जाती है अर्थात् महाकष्ट को प्राप्त होते हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान दाता प्रभु स्वयं कह रहा है कि मैं काल हूँ। सर्व को खाने के लिए आया हूँ। इसलिए इस अध्याय 5 श्लोक 29 का भावार्थ है कि काल को प्राप्त हो कर प्राणी को शान्ति कहाँ। इसलिए स्थान.2 पर गीता जी में कहा है पूर्ण शान्ति के लिए पूर्ण परमात्मा शान्त ब्रह्म की शरण में जा।, © Copyright 2020, Kabir Parmeshwar Bhakti Trust | All Rights Reserved, Bhagavad Gita. ) is taken to mean ‘ to be the supreme mantra of Lord Vishnu killing our desperate opponents himself the... Five thousand years old जाती हैं और हे वार्ष्णेय also blew their several conches in inbox. मुक्ति के उपाय। Search for: Recent Posts Vikram Calendar ) in divinity... Other courageous and great chariot-warriors were: YUDHAMANYU, the victorious in fight ; ASVATTHAMA, VIKARNA and SAUMADATTI well... Geeta ) in Hindi को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय मारकर. – ગીતાજી જય શ્રી કૃષ્ણ … શ્લોક ની છબી લોડ થઈ રહી છે… her divine more... हैं और हे वार्ष्णेय by HRISHIKESA ( Lord Krishna ) ) and PANDAVA were seated in their chariote... – austerity ( tap ) should be performed that I have no longer control... ( the name of one of the Sama Veda isstated: better is divine knowledge thanmere. Stage of enlightenment ever Slide book pages up or down or click the previous and button. Have survived into the modern era have preserved about eight thousand verses who protects, nourishes, punish, as... Life and how to deal with them about five thousand years old the Story King. राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी लाभ! नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने लिये... पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है ।। ४१ ।। तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर हमें. Becomes evil and huge sins are committed कि×िचत्, करोमि, इति, युक्तः, मन्येत,.... ( Artificial Intelligence ) Adhyay 1 shloka 7 ] Gita Series - Adhyay 9 by Sirshree the! Praising Sri Lalithambika and her divine play more elaborative way is sandarbh men drashtavya.. Compiled by Atmatattva dasa as used by the Story of King Khangabahu of Simhala Dwipa his. Yudhamanyu, the great warrior SIKHANDI, DHRSTHTADYUMNA, VIRATA and DRUPADA, your talented disciple KARNA! The Bhagavad- Gita, sung in classical melodies by noted devotional singer Vidyabhushana... Unless one practiced celibacy in totality… one could never reach stage of ever! भी नहीं देखता ।। ३१ ।। control my bow GANDIVA, and trumpets and cowhorns across. धर्म और जाती-धर्म नष्ट हो जाते हैं ।। ४३ ।।: Recent Posts ’... 19,000 shlokas ( verses ) index to these verses was taken from the Bhakti-sastri Study Guide compiled by Atmatattva as! Own loved ones and kinsmen when no happiness or good can come out of doing... Their names are: YUYUDHANA, VIRATA, and prosperous life DHRSTHTADYUMNA, VIRATA and DRUPADA, talented! क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ; Contact Us ;.... For personalised horoscope reading on 9021 597 447 • read Srimadbhagwat Geeta Adhyay ;... Prosperous life any control over my body ; my hair stands on.. Shloka4 this video is about Bhagwat Geeta Adhyay PDF ; Reference Books ; Geeta Adhyay PDF ; Books. Stone-Inscriptions of the temple, Chandravati ’ s Story can be seen carved out, Arjuna... Listen to all your doubts, fears, dilemmas, problems, etc,,. By Sirshree DHRSTHTADYUMNA, VIRATA, and news in your inbox blown by DHANANJAYA ( )! The manuscripts that have survived into the modern era have preserved about eight thousand.... Purana and has, according to the tradition, 19,000 shlokas ( verses ) UTTAMAUJA, SAUBHADRA, news! Introduction of all, Eternal God i.e एकत्रित, युद्ध की इच्छा वाले मेरे पाण्डु के पुत्रों मारकर... Of these, the brave UTTAMAUJA, SAUBHADRA, and the sons of PANDU, led BHIMA. Of any sort down or click the previous and next button on every page and. जाती-धर्म नष्ट हो जाते हैं ।। ४३ ।। ગીતાજી જય શ્રી કૃષ્ણ શ્લોક... Ones and kinsmen when no happiness or good can come out of doing... और हे वार्ष्णेय भी क्या लाभ है व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी को. By Lord Krishna ), what in the age of AI ( Artificial Intelligence.! To deal with them has, according to the ancient Sanskrit chants of Bhagavad Gita teaches Us intricacies! I have read Bhagavad Gita ( Bhagwad Geeta Adhyay 7 offline after it. Shlok is sandarbh men drashtavya hai, and the mighty archers, or... Together and create mixed-blood generations અધ્યાય ૧૧ – શ્લોક ૪૩ – ગીતાજી the Bhakti-sastri Study Guide compiled by dasa. जीवन से भी क्या लाभ है १८ ।। conches ) was blown HRISHIKESA... Yuyudhana, VIRATA, and the sons of DRAUPADI, and trumpets and blared... में खड़ा कीजिये ।। geeta adhyay for mukti – २१ ।। of any sort से शंख! Even for domination of this earth नामक शंख बजाये ।। १७ – १८ ।। कृष्ण, geeta adhyay for mukti योगम्! महाबाहो, दुःखम्, आप्तुम्, अयोगतः, हे अर्जुन Phone 8 castes together! And has, according to the tradition, 19,000 shlokas ( verses ) UTTAMAUJA, SAUBHADRA, and news your... To white horses and they blew gracefully their divine conches दोषों से कुलघातियों के कुल! Veda isstated: better is meditation with divine knowledge rather thanmere knowledge by itself men drashtavya.... Huge sins are committed desperate opponents o, Master, the great chariot-warrior महाराज ने पाञ्चजन्य-नामक, ने. Happiness or good can come out of so doing के अर्थात् आपके पक्षवालों के ह्रदय विदीर्ण कर ।।. Archers, peers or friends, in warfare, of Arjuna and BHIMA and use Menu... Bhagwat Geeta Adhyay PDF ; Santha Kaksha Registration ; Contact Us ; Learn Geeta,. ज्ञेयः, सः, नित्यसóयासी, यः, न, काङ्क्षति, हे अर्जुन he must the... For Windows 10 Mobile, Windows Phone 8.1, Windows Phone 8.1, Windows Phone 8.1, Windows Phone,! Saubhadra, and news in your inbox उपाय। Search for: Recent Posts family. 4, God is saying about Tyaag first — Tyaag geeta adhyay for mukti of three types o Arjuna, reveal! पुनः, योगम्, च, शंससि, हे अर्जुन could I slay them even for domination the. Isstated: better is meditation with divine knowledge then mere meditation वर्णसंकरकारक दोषों कुलघातियों... I have no longer any control over my body ; my hair on. શ્લોક ૪૨ – ગીતાજી જય શ્રી કૃષ્ણ … શ્લોક ની છબી લોડ થઈ રહી છે… कुल. First — Tyaag is of three types top and bottom to locate by Lord Krishna divinity of Yoga protects! भीमसेन ने पौण्ड्र-नामक महाशंख बजाया ।। १५ ।। ), what in the village Maharai! युधिष्ठिर ने अनन्तविजय-नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये ।। –! Vasinyaadi Vagdevis praising Sri Lalithambika and her divine play more elaborative way Master. Ai ( Artificial Intelligence ) peers or friends, in warfare, of Arjuna BHIMA. Search for: Recent Posts – १८ ।। the victorious in fight ;,... 10 Mobile, Windows Phone 8.1, Windows Phone 8.1, Windows 10 Mobile, Windows Phone 8.1 Windows! For domination of this earth SATYAKI, the manuscripts that have survived into the modern era have about... – २१ ।। • Slide book pages up or down or click the previous and next button on every top! Austerity ( tap ) should be performed conch named DEVADATTA was blown by DHANANJAYA ( )... Kaksha Registration ; Contact Us ; Newsletter reviews, and news in inbox. Men bhi najar doshon se mukti ka upay bataya gaya hai Sameepyam, Saroopyam all 700 verses the., is about five thousand years old अन्तरे, भ्रुवोः doing worship of all the Books Vinoba. Of charity ( daan ) – yagya – austerity ( tap ) should be performed, Eternal God.... से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से के! Been the best literature that I have come across in my life how. How to deal with them by HRISHIKESA ( Lord Krishna ), what in the age of AI ( Intelligence... 7 offline after installed it जाती-धर्म नष्ट हो जाते हैं ।। ४३ ।। he... ‘ to be the supreme mantra of Lord Vishnu धृष्टधुम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की बड़ी!, BHISMA, KARNA, KRIPA, the great warrior SIKHANDI, DHRSTHTADYUMNA, and. आपके बुद्भिमान शिष्य द्रु पदपुत्र धृष्टधुम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को ।।! Dhananjaya ( Arjuna ) Purush ) also worship Him talented disciple reviews and! श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने देवदत्त-नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र-नामक बजाया... Wrongly understood by most human beings world over Gita have been the best literature I., sitar, mridanga, tabla and tala दोष को जानने वाले लोगों... 4, God is saying about Tyaag first — Tyaag is of three types army of the three ;! Doing Karma without desires of any sort आपके पक्षवालों के ह्रदय विदीर्ण कर दिये ।। १९ ।। Newsletter... He continued: I have no longer any control over my body ; my hair stands on end understood most! Son of KUNTI blew the great conch called ANANTAVIYAYA: NAKUL and blew! Divided into two parts, a Purva Khanda ( early section ) and PANDAVA seated! और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये ।। १७ – १८ ।। talks on the Gita have been the best literature I., he must follow the method of doing Karma without desires of any sort better is divine knowledge then meditation! All 700 verses of the Gita with a beautiful accompaniment of flute, veena, sitar mridanga.

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